#Usha Kiran Khan : पद्मश्री से सम्मानित लेखिका डॉ. उषाकिरण खान नहीं रहीं; साहित्य और शिक्षा जगत में शोक की लहर#

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पद्मश्री से सम्मानित हिंदी और मैथिली साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ उषा किरण खान का निधन हो गया। उनकी पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं। अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से मिथिलांचल समेत पूरे बिहार में शोक की लहर है। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के सर्वोच्च साहित्य सम्मान भारत-भारती से नवाजा गया था।

मुख्यमंत्री ने जताया शोक, कहा- अपूरणीय क्षति
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. उषा किरण खान के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि स्व. डॉ. उषा किरण खान प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखिका थीं। उन्होंने हिन्दी एवं मैथिली साहित्य में कई उपन्यासों, कथाओं की रचना की थी। डॉ. उषा किरण खान को पद्मश्री तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ. उषा किरण खान के निधन से हिन्दी एवं मैथिली साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुयी है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

दिनकर राष्ट्रीय सम्मान समेत दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा गया
प्रख्यात लेखिका पद्मश्री उषा किरण खां के निधन पर गहरा शोक जताते हुए भाजपा विधायक डॉ. संजीव चौरसिया ने इसे साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति और एक युग का अवसान बताया है। विधायक ने दिवंगत आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि अपने उपन्यासों व कथाओं के जरिये उन्होंने आम लोगों पर अमिट छाप छोड़ी। हम सबको लंबे अरसे तक उनकी कमी खलती रहेगी। पद्मश्री के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का हिन्दी सम्मान, राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय सम्मान समेत दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा जाना साहित्य में उषा जी के उल्लेखनीय योगदान को दर्शाता है।

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साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था
बता दें कि डॉ खान ने हिंदी के साथ-साथ मैथिली में भी दर्जनों उपन्यास व कहानियां लिखी थीं। इसके अलावा वह बाल साहित्य और नाटक लेखन के लिए भी जानी जाती थीं। मैथिली में लेखन के लिए डॉ खान को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। उषा किरण खान दरभंगा जिले से ताल्लुक रखती थीं। पटना कॉलेज में प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विज्ञान की आप विभागाध्यक्ष रह चुकी थीं। आपकी अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें उपन्यास, कहानी, नाटक और बाल-साहित्य जैसी विविध विधाएँ सम्मिलित हैं। भामती, सृजनहार, हसीना मंज़िल, घर से घर तक उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।