विश्व पुस्तक मेले में हम पहले दिन 25 फरवरी’23 को ही पहुंचे और अंतिम 05 मार्च को भी समापन-पल तक डटे रहे. दोनों रेखांकित क्षण निस्संदेह एक ही स्थल.. ‘राजकमल’ के मुखर सज्जित मंडप ‘जलसा घर’ से जुड़े हैं, लेकिन यह डटना अपने लिखे और उसे पढ़े, दोनों के लिए था.
स्वलेखन और अपने पाठक के लिए मुस्तैदी तो पहले भी रही लेकिन सिर्फ़ भावना के स्तर पर, एक आत्मानुभव मात्र! अब यह सजीव, दृश्यमान !
मेले में हुईं बातें-मुलाकातों ने बहुत कुछ साकार किया है. इन पर आगे होंगी बातें…
कई मुलाकातों के स्नैप साथियों के मोबाइल फोन में चले गए, यहां सिर्फ़ अपने पास उपलब्ध चित्रों में से प्रमुख उपस्थित कर रहा हूं.
कवि अशोक वाजपेयी और कार्टूनिस्ट आबिद सुरती से लेकर कथाकार पंकज बिष्ट, आलोचक रवींद्र त्रिपाठी, मदन कश्यप, पंकज शर्मा, बलराम अग्रवाल, लीना मल्होत्रा, रूपा सिंह, श्योराज सिंह बेचैन, हरनोट व मुख़्तार अहमद आदि से मुलाकात-बातें यहां भले उपस्थित नहीं की जा पा रहीं, दिलोदिमाग पर उनकी मौजूदगी कायम है जो शायद लंबे समय तक बनी रहे.