कला, साहित्य एवं संस्कृति केंद्र, नरौली, आज़मगढ़ के तत्वावधान में रविवार को आयोजित कवि सम्मेलन एवं अभिनन्दन समारोह में जिले के वरिष्ठ साहित्यकारों तथा समाजसेवी वर्ग को सम्मानित किया गया।
दीप प्रज्ज्वलन के साथ कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’ जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना गीत “वागेश्वरी माँ शारदे हे मातु वीणापाणिनी,
अज्ञानी हूँ माँ कर दया सिद्धेश्वरी, मृगलोचनी।
आ कंठ में मेरे बसों माँ सरस्वती, रागेश्वरी।
तुमसे सकल ये सृष्टि माँ तू है घटा मनभावनी।।” से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ0 वाई एम सलमानी तथा समाजसेवी महाराणा प्रताप सेना के प्रमुख बिजेंद्र सिँह ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के चिंतन के साथ ही समाज के वंचित तबकों के लिये अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार अनवरत समाजसेवा में लगे रहना चाहिए यही ईश्वर की सच्ची सेवा है और मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म। कवि एवं साहित्यकार समाज अपनी रचनाओं से समाज में ऐसे ही मानवीय मुल्यों का निर्माण करता है इसलिए उसका अवश्य अभिनंदन होना चाहिये।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार प्रभुनारायण पाण्डेय प्रेमी जी ने कला साहित्य एवं संस्कृति केंद्र की प्रबन्धक अरुणिमा सिंह एवं डॉ0 प्रवेश कुमार सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे संस्था के माध्यम से दोनों लोग न केवल कला साहित्य और संस्कृति की साधना कर रहे हैं अपितु उच्च मूल्यों से नई पीढ़ी को विभूषित कर राष्ट्र की भी सेवा कर रहे हैं।
इसके पूर्व कवि सम्मेलन में जनपद के कवियों ने अपनी रचनाओं से समां बांध दिया।संजय पांडे ‘सरस’, मैकश आज़मी, दिनेश श्रीवास्तव, रुद्रनाथ चौबे ‘रुद्र’, विजयेंद्र श्रीवास्तव ‘करुण’, घनश्याम यादव, डॉ0 आशा सिंह, डॉ0 प्रतिभा सिंह, शालिनी राय ‘डिम्पल’, स्नेहलता राय, डॉ0 मनीषा मिश्रा, उदयनारायण सिंह ‘निर्झर’, प्रो0 गीता सिंह एवं डॉ0 अखिलेश चंद ने अपने काव्य पाठ से उपस्थित लोगों का मन मोह लिया।
संस्था के अधीन कार्यरत वी0 डी0 एस0 स्टूडियो के कोरियोग्राफर अभय सिंह के निर्देशन में नृत्य साधना का अभ्यास करने वाले बच्चो द्वारा अपने नृत्य और संगीत के माध्यम से अतिथियों के समक्ष सुंदर प्रस्तुति दी।
वरिष्ठ कवि रुद्र नाथ चौबे जी की पंक्तियाँ “चौराहों पर सब पहरे हैं। दर्द हैं जितने सब गहरे हैं।।” ने प्रस्तुत कर सबको भावविभोर कर दिया। वहीं कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’ जी द्वारा श्रावण मास के महत्वपूर्ण लोकगीत कजरी “आज शिव की नगरिया में जइबे करब,
दूध हम चढ़इबे करब ना।
मन्नत होइहे अब पूरा,
हम चढ़इबो धतूरा-2
हम चढ़इबो धतूरा
हम चढ़इबो धतूरा
फूल-मलवा से शिव के सजइबे करब,
दूध हम चढ़इबे करब ना।
आज शिव की नगरिया में जइबे करब,
दूध हम चढ़इबे करब ना।” का गायन लोक संस्कृति की महत्ता का परिचायक बना। वरिष्ठ कवयित्री आशा सिंह जी द्वारा “बिना कांटों के जीने का तजुर्बा है नही हमको,
चुभन होती नही तो जिंदगी बेज़ान लगती है।” की ग़ज़ल ने समां बांध दिया।
वरिष्ठ साहित्यकार विजयेन्द्र श्रीवास्तव जी ने अपनी रचना “क्या घट जाता है यदि तुम थोड़ा और सब्र कर लेते।
आंसू के बदले अंजुरी में नेह नीर भर लेते।।” गाकर सबके हृदय पर छाप छोड़ने में कोई कसर नही छोड़ी। वरिष्ठ साहित्यकार व मीडियाकर्मी संजय पांडे ‘सरस्’ जी की रचना “स्वार्थ ही जब व्याप्त है इंसान के अंतःकरण में, दूसरों की हित की बातें हो कहां से आचरण में”
ने वर्तमान समय के मानव-व्यवहार पर करारा चोट किया।
संस्था की प्रबन्धक अरुणिमा सिंह के द्वारा महिला सेवा संस्थान से जुड़े डॉ0 पूनम सिंह, गीता सिंह, अनामिका सिंह, डॉ0 पंखुड़ी मौर्या के साथ ही डॉ0 अंशुमान राय, अमृत रॉबिन बख्श, अभिषेक राय, डॉ0 कल्पनाथ सिंह कोषाध्यक्ष भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, अनिता त्रिपाठी, ईशा मिश्रा, अनिता यादव तथा डॉ0 अजित प्रताप सिंह को भी सम्मानित किया गया।
कवि सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का कुशल संचालन युवा कवियत्री डॉ0 प्रतिभा सिंह ने किया।
इस अवसर पर डॉ0 पंकज सिंह, डॉ0 जे0 पी0 यादव, श्री उमेश सिंह एवं अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
संबाददाता अमित खरवार