भारतीय संस्कृति की पहचान हैं गंगा

संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने वाली गंगा हमारे भारत की शाश्वत पहचान हैं। हमारी अस्मिता हैं । पतित पावनी जान्हवी के तट पर ऋषियों ने हजारों-हजार ऋचाएं और श्लोक रचे हैं। गंगा हमें अन्न-धन से परिपूर्ण करती हैं। हमारी जीवन की डोर गंगा से जुड़ी है और मरने पर भी मोक्ष देती हैं। गंगा हमारी आस्था, धरोहर हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान हैं। गंगा न केवल हमें जल देती हैं बल्कि पोषण एवं रोजगार का अवसर भी देती है। नदियों के बिना किसी भी सभ्यता का विस्तार नहीं हो सकता है और गंगा नदी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है जो राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का काम करती है। गंगा को हम मां समझते हैं । आज भी हम मां रूपी गंगाजल में तमाम हानिकारक रसायन उद्योग-धंधों के प्रदूषित जल और मानव मल-मूत्र तथा कूड़ा-करकट प्रवाहित करते जा रहे हैं।

क्या हम गंगा पुत्रों का मां के प्रति यही दायित्व हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कटिबद्ध हो जाएं।

गंगा यदि अपना आस्तित्व खो देती हैं तो क्या हमारा आस्तित्व बचा रहेगा। इस प्रश्न पर हम यदि गंभीरता पूर्वक विचार नहीं करते हैं तो यह हमारा दुर्भाग्य कहा जायेगा। गंगा केवल नदी नही हैं बल्कि भगीरथ के प्रयत्‍‌नों से धरती पर उतरी देव नदी है। हमारी संस्कृति की साक्षी हैं। गोमुख से गंगा सागर तक अपनी सभ्यता की रचना करने वाली गंगा को सरकार राष्ट्रीय नदी घोषित कर चुकी हैं।

लेकिन यहां प्रश्न यह है कि सारा जिम्मा सरकार को सौंप कर हम गंगा को बचाने के उत्तरदायित्व से मुक्त हो सकते हैं। यदि जनता एवं सरकार सम्मिलित प्रयास कर गंगा को फिर पुरानी स्थिति में लाने का प्रयास करें तो कोई कारण नही है कि गंगा फिर जीवनदायिनी पवित्र मोक्ष देने वाली अविरल रूप से बहने वाली नदी न बन जाय। बस गंगा को साफ रखने का अनुष्ठान हमें लेना है। गंगा को बचाने के लिए हम सबको भगीरथ बनना ही पड़ेगा।
मंगलवार को दशाश्वमेध घाट से अस्सी घाट तक जागरूक करते हुए नमामि गंगे के स्वयंसेवक राजेश शुक्ला ने गंगा किनारे स्वच्छता की अलख जगाई । दशाश्वमेध घाट पर गंगा तलहटी में श्रमदान करके लोगों से गंगा में गंदगी न करने का आवाह्न भी किया ।

राजेश शुक्ला गंगा सेवक