#सरकार द्वारा साक्ष्य नही प्रस्तुत करने पर न्यायालय ने सरकारी वकील और वाराणसी जिलाप्रशासन के अधिकारियो को लगायी फटकार#

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रोहनिया। मोहनसराय ट्रान्सपोर्ट नगर योजना के मुकदमे की सुनवाई आज माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद मे लगातार दुसरे दिन भी हुई जिसमे किसानो के अधिवक्ता कल्पनाथ , ऐ के सचान एवं जितेन्द्र कुमार ने साक्ष्य के साथ वैधानिक पक्ष रखा , सरकारी अधिवक्ता और वाराणसी जिलाप्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी ने उक्त प्रस्तावित योजना के मुआवजे का मेमो जिसपर किसानो की सहमति पत्र , बिना 80% मुआवजा दिये 17-04-2003 किसानों का नाम काटने एवं एवार्ड 2012 मे करने क्यो हुआ का साक्ष्य माननीय उच्च न्यायालय को नही दे पाये तो न्यायालय ने सरकारी अधिवक्ता और जिला भूमि अधिपत्य अधिकारी मीनाक्षी पाण्डेय को न्यायमूर्ति सलील कुमार राय एवं न्यायमूर्ति अरूण कुमार सिंह देशवाल ने खूब लताड़ लगायी, न्यायमूर्ति द्वय ने कहा कि बिना 80% किसानो को मुआवजा दिये एवं सहमति दिये आप प्रक्रिया कैसे शुरू कर दिये यह तो पूर्णतया कानून का खुला उलंघन है , योजना तो लैप्स हो जानी चाहिए , न्यायालय से सरकार अधिवक्ता और जिला भूमि अधिपत्य अधिकारी ने न्यायालय के सामने साक्ष्य देने हेतु बहुत विनम्रता से याचना कर एक अवसर की मांग किया जिसपर न्यायमूर्ति द्वय ने 29/05/2023 को सुबह दस बजे मूल कागजात ( साक्ष्य) को प्रस्तुत करने का अंतिम अवसर हेतु आदेश दिये, न्यायमुर्ती द्वय ने यह भी कहा कि अधिकारी पूरी तैयारी और जवाबदेही के साथ आये कि कोर्ट के सवालो का जवाब गंभीरता से दे सके।न्यायाधीश द्वय ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका भुमि अधिग्रहण कानून की धारा 24 के आधार पर अधिग्रहण पूरी प्रक्रिया लैप्स होने लायक है , क्योकि भूमि अधिग्रहण कानुन 1894 की धारा 17 के तहत अधिग्रहित जमीन का 80% प्रतिकर बाटने के बाद अधिग्रहित जमीन पर भौतिक कब्जा या कोई प्रक्रिया कर सकता है।
किसान संघर्ष समिति के मुख्य संरक्षक विनय शंकर राय “मुन्ना” ने बताया कि बैरवन, कन्नाडाडी, सरायमोहन एवं मिल्कीचक के 1194 किसानो की जमीन ट्रासपोर्ट नगर योजना के तहत अधिग्रहित करने हेतु प्रस्तावित था जो पूर्णतया किसान विरोधी थी जिसके कारण 1998 से अन्नदाता अपनी पुस्तैनी जमीन वैधानिक तरीके से बचाने हेतु संघर्ष कर रहा है जिसके कारण आज तक एक इन्च किसानो की जमीन प्रशासन कब्जा नही कर पाया जिसका जिलाधिकारी वाराणसी ने 21/06/2021 को शासन को उक्त योजना डिनोटिफाई करने हेतु पत्र भेजे जिसमे स्पष्ट जिक्र है किया है किसानो के विरोध के चलते जमीन कब्जा नही हो पायी, लेकिन माननीय न्यायालय मे 17/04/2023 को कब्जे का दावा कर वाराणसी प्रशासन दोहरी बात मे स्वतः फंस गये है, तथा 40 % मुआवजा देने की बात भी न्यायालय मे सरकारी वकील स्वतः स्वीकार किया है जबकि 80% बिना मुआवजा दिये कोई प्रकिया करना असंवैधानिक है तथा एवार्ड भी 2012 मे हुआ है जो 2 वर्ष अर्थात सन् 2005 तक नियमतः कर लेना चाहिए जो नही हुआ है जिसको किसानो के अधिवक्ता ने साक्ष्य के साथ न्यायालय मे लगा दिया है। ग्यात्वय हो कि 16 मई को वीडीए ने पुलिस फोर्स के बल पर कब्जा लेना शुरू किया तो किसानो ने जमकर प्रतिरोध किया जिसमे बर्बर लाठीचार्ज हुआ जिसमे दर्जनो किसानो को चोट भी आयी है जिसका 17 मई को हाइकोर्ट ने संज्ञान लेते हुये किसानो के खिलाफ उत्पीङनात्मक कार्यवाही ना करने के आदेश के साथ यथास्थिति रखने का भी आदेश पारित कर दिया जो सोमवार 29/05/2023 तक भी यह आदेश प्रभावी है।