देश भर की मीडिया में सुर्खियों में छाए उमेश पाल हत्याकांड की साजिश रचने के मुख्य किरदार बरेली जेल में बंद अशरफ को माना जा रहा है, जिसने अपने भाई अतीक के कहने पर शूटरों को तैयार किया और सनसनीखेज शूटआउट करा दिया। इससे शासन-प्रशासन हिल गया।
पुराने पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कि अपराध और राजनीति के गठजोड़ का नतीजा है कि अशरफ इस तरह से चुनौती बना हुआ है, वरना उसे 1996 में पहला कत्ल करने के बाद काबू में कर लिया जाना चाहिए था।
उस पहले हत्याकांड में ही अशरफ को पुलिस से लेकर सत्ताधारी दल तक साथ मिला और आज तक उसे सजा नहीं हो सकी। 1996 में अशोक साहू हत्याकांड का किस्सा कुछ यूं है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, कत्ल से दो दिन पहले अशोक और अशरफ के बीच कार ओवरटेक के दौरान सिविल लाइंस में झड़प हो गई थी।
अशोक को पता चला कि अशरफ कौन है तो उसने अतीक अहमद के पास जाकर माफी मांगी। मगर अतीक ने धमकाते हुए कहा कि बड़ी गलती कर डाले हो। फिर अशोक को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। अब देखिए अतीक गिरोह की पुलिस से सेटिंग। उसी दिन घटना से पहले अशरफ को चंदौली के थानेदार ने तमंचा के साथ गिरफ्तार दिखा दिया।
यानी अशरफ तो घटना के वक्त चंदौली के थाने में बंद था। यह थानेदार प्रयागराज में ही चकिया इलाके का अशरफ की बिरादरी वाला था। मामला तूल पकड़ा तो उस इंस्पेक्टर के घर की भी तलाशी ली गई थी लेकिन बाद में उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
कत्ल की जांच सीबीसीआइडी को दी गई। घर में छापा मारकर अतीक और उसके पिता को अवैध हथियारों और कारतूूसों के साथ गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। मगर फिर अतीक ने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया। जांच अधिकारी को ही बदलवा दिया। कुछ समय बाद अतीक और अशरफ समेत सभी अभियुक्त जेल से रिहा हो गए। आज तक मुकदमा लंबित है।
उस रात इंस्पेक्टर की भी उड़ गई थी नींद
अतीक गैंग इस कदर दुर्दांत है कि किसी को नहीं बख्सता। कारोबारी हो ठेकेदार, नेता, वकील या फिर पुलिसवाला ही। उमेश हत्याकांड में भी वकील और पुलिसवाले मारे गए हैं। 1996 में अशोक साहू हत्याकांड की सीबीसीआइडी में विवेचना करने वाले तत्कालीन इंस्पेक्टर (अब रिटायर हो चुके डिप्टी एसपी) धीरेंद्र राय को भी अतीक गिरोह का खौफ झेलना पड़ा।
एक रात वह वाराणसी में अपने निवास पर थे तभी टेलीफोन की घंटी बजी और उधर से उनका नाम पूछा गया। उसके अंदाज से समझ गए कि अतीक गैंग का अपराधी है और शायद घर में मौजूदगी के बारे में पता करने के लिए पीएनटी में फोन किया। हमले के खतरे को भांपकर धीरेंद्र राय दूसरे कमरे से राइफल उठाकर ले आए और रात भर बचाव के लिए सतर्क रहे।