दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था–यानी भारत, जहां मरीज़ ठेले पर है और बुजुर्ग पति उसे अस्पताल ले जा रहा

यह है दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था–यानी भारत, जहां मरीज़ ठेले पर है और बुजुर्ग पति उसे अस्पताल ले जा रहा है।

पुरानी हिंदी फिल्म में ऐसा करने वाला हीरो बनता था। एमपी के रीवा में वह जीरो है। हीरो तो शिवराज है, जो इन्हीं रामलाल कोल की बेहतरी के नाम पर लाखों करोड़ का कागज़ी निवेश लेकर आए हैं।

कहते हैं अदाणी सेठ एमपी में अस्पताल बनवाएगा। रामलाल कोल या उसकी बीवी मानवती के लिए नहीं, किसी अमीर या लाखों का बीमा करवा चुके मध्यम वर्ग के लिए।

रामलाल तक एंबुलेंस नहीं आई। किसको फ़र्क पड़ता है? बंद होते, लुटते बैंक। कौन, किससे सवाल पूछता है?

बार–बार कोई न कोई रामलाल कोल हमारे सामने आता है और हम अफ़सोस के घड़ियाली आंसू बहाकर अपनी चुटिया संभालते हुए पहले से और बेशर्म हो जाते हैं।

यही रामलाल कोल नवंबर में बीजेपी के लिए सत्ता का भाग्यविधाता बन जायेगा। 5 किलो राशन, कुछ पैसे, थोड़ी हमदर्दी का मरहम और दो झूठे वादे ही तो चाहिए।

इसी रामलाल कोल के उत्थान की शपथ लेकर प्रधानमंत्री बना एक शख़्स 8000 करोड़ के विमानों पर उड़ता है। लेकिन एक गरीब के लिए एंबुलेंस नहीं जुगाड़ पाता।

कौन सवाल करता है? जोशीमठ के धंसने पर कौन, किससे जिम्मेदारी मांग रहा है? कोई नहीं। सबको मुआवजा चाहिए। धंसी हुई सरकार भी धंसने के बाद एकमुश्त पैसा देकर पिंड छुड़ाना चाहती है।

गौर से देखिए। गिद्ध जोशीमठ के आसमान पर मंडराने लगे हैं।

संविधान की प्रस्तावना ही तहस–नहस कर दी गई है। भारत की बहुसंख्यक कौम देश को तबाह कर हजार साल से एक कौम के खिलाफ़ धर्मयुद्ध लड़ रही है–जिसे मोहन भागवत नाम का व्यक्ति जायज़ कहता है।

बेशक लड़िए, लेकिन जीत नहीं पाएंगे। हां, लोगों को आपस में लड़वाकर सत्ता पर काबिज़ ज़रूर रहेंगे।

मरते रहेंगे रामलाल और मानवती जैसे लोग। उनके नाम का विकास देश का 15 प्रतिशत तबका कार, नई ड्रेस, ऊंची शानदार अटारियों और दिखावे में हड़प जायेगा। हो भी रहा है।

इसका अंत अब दिखने लगा है। कहीं भी, कभी भी मौत आती है। एंबुलेंस बाद में आती है। या फिर मौत की चादर ओढ़ी जा रही है। एंबुलेंस तब भी आखिर में आती है।

मेरी मां कहती थीं– गरीब की हाय कभी बेकार नहीं जाती।