उत्तर प्रदेश में कभी आतंक का पर्याय रहे मुन्ना बजरंगी की 9 जुलाई 2018 की सुबह बागपत जेल में ताबड़तोड़ फायरिंग कर हत्या कर दी गई थी. जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी को 8 से 10 गोली मारने का मकसद साफ था, न सिर्फ मुन्ना को हर हाल में मारना बल्कि दहशत भी कायम करना. हो भी क्यों न, आखिर मुन्ना खुद कभी दहशत का दूसरा नाम रह चुका था.
2005 में गाजीपुर के विधायक कृष्णानंद राय पर ताबड़तोड़ 400 गोलियां बरसाने वाला मुन्ना बजरंगी एक ऐसा नाम था, जो कभी उत्तर प्रदेश और बिहार में बाहुबलियों की ताकत बनकर उभरा था. कृष्णानंद राय की हत्या के बाद फरार हुए मुन्ना को लगातार 4 साल की मेहनत के बाद 2009 में मुंबई से गिरफ्तार किया जा सका था
लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि कई राज्यों की पुलिस की नाम में दम कर रखने वाला और लोगों में दहशत फैलाने वाला मुन्ना बजरंगी अपराध की दुनिया में महज 14 साल की उम्र में प्रवेश कर गया था
मुन्ना बजरंगी ने 14 साल की उम्र में 250 रूपये की पिस्टल खरीद कर पहली हत्या की थी और इस तरह जुर्म की दुनिया में हुई थी उसकी एंट्री.
1965 में किसान परिवार में जन्मे प्रेम प्रकाश को किसानी में मन नहीं लगा तो वह कालीन का काम सिखने लगा. 14 साल की उम्र में घरवालों ने उसकी शादी कर दी. शादी के 4-5 दिन बाद ही पैसे को लेकर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी के चाचा का गांव के ही एक शख्स भुल्लन सिंह से विवाद हो गया.
भुल्लन ने बजरंगी के चाचा को गालियां दीं जो बजरंगी को चुभ गईं. बस उसने 500 रूपये में पिस्टल खरीदी और सीधा पहुंच गया भुल्लन के यहां. मुन्ना बजरंगी ने उस 500 रुपये की पिस्टल से भुल्लन पर फायर कर दिया. भुल्लन मारा गया और मुन्ना बजरंगी का जरायम की दुनिया में दाखिला हो गया.
जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद प्रेम प्रकाश ने खुद अपना नाम रख लिया मुन्ना बजरंगी. बस यहां से मुन्ना बजरंगी ने ताबड़तोड़ वारदातों को अंजाम देना शुरू किया और ऐसा कोहराम मचाया कि लोग इसके नाम से दहशत खाने लगे.
नामजद होने के बाद पुलिस मुन्ना को तलाशने लगी। इसी बीच वह बनारस के पूर्व डिप्टी मेयर अनिल सिंह के संपर्क में आ गया। अनिल के तब बहुत दुश्मन थे जिन्हें निपटाने काम मुन्ना को मिला।
1985 में अनिल सिंह के दुश्मन सीताराम चौरसिया की हत्या वाराणसी के चेतगंज में हुई, आरोप लगा मुन्ना पर। इसके कुछ दिनों बाद एक और दुश्मन अवनीश राय पर फायरिंग हुई। अवनीश बच गये लेकिन कहा गया कि गोली मुन्ना ने चलाई थी। एक के बाद एक कई वारदातों के बाद मुन्ना का कद तेजी से बढ़ गया और लोग अब मुन्ना को मुन्ना बजरंगी कहके बुलाने लगे थे।
अनिल सिंह के साथ रहने के दौरान मुन्ना गाजीपुर के उभरते बाहुबली मुख्तार अंसारी से मिलता है। तब मुख्तार अंसारी और बृजेश-त्रिभुवन गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो चुकी थी। लेकिन मुन्ना बजरंगी के नाम अभी गैंगवार से नहीं जुड़ा था। 1990 में साधु सिंह हत्याकांड के अभियुक्त राजदेव पांडेय की हत्या के बाद पहली बार मुन्ना बजरंगी का नाम गैंगवार से जुड़ा।
एक बार मुन्ना बजरंगी के पैर में गोली लग जाती है। वही किसी तरह मुख्तार के घर पहुंचा। मुख्तार अंसारी उसे लेकर तुरंत पटना पहुंचता है और इलाज कराता है। मुन्ना ने इसका एहसान माना और मुख्तार का साथ कभी नहीं छोड़ा।
मुन्ना को गोली मारी थी जौनपुर के बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह ने। ठीक होते ही मुन्ना के निशाने पर रामचंद्र थे। 1993 में जौनपुर एसपी ऑफिस के पास रामचंद्र सिंह और उनके गनर आलमगीर और भानुप्रताप सिंह की हत्या हो गयी। इस तिहरे हत्याकांड में मुन्ना बजरंगी, माया शंकर सिंह, विनोद नाटे और अनिल सिंह का नाम आया। अब मुन्ना बजरंगी का नाम अंडरवर्ल्ड की दुनिया में पहचान बना चुका था।
4 मई 1998 को उत्तर प्रदेश सरकार ने एसटीएफ के गठन को मंजूरी दे दी। यह वह समय था जब उत्तर प्रदेश हर दूसरे-तीसरे दिन एके 47 चलने की खबर आती थी। प्रदेश सरकार ने माफिया के सफाए के लिए एसटीएफ का गठन किया। 11 सितंबर 1998 को एसटीएफ को मुन्ना के मुवमेंट की जानकारी मिली। वह दिल्ली के करनाल रोड पर था। जाल बिछाया गया। काले रंग की स्टीम जिसका नंबर 3सीएल 4315 था, उसमें मुन्ना बैठा था।
एक पेट्रोल पंप के पास मुठभेड़ हुई। उस समय मुन्ना के साथ यतींद्र गुजर भी था। दोनों ने फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस ने दोनों को गोली मारी। एसटीएफ की टीम दोनों को लेकर लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल लेकर आती है और सूचना सीएम कल्याण सिंह को दी जाती है।
दोनों को मृत घोषित कर दिया गया। दोनों की बॉडी को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया। लेकिन जब डॉक्टर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे तो मुन्ना की सांसें चल रही थी। डॉक्टर ने तुरंत इसकी जानकारी एसटीएफ टीम में पुलिस अधिकारी रहे राजेश पांडेय को दी। मुन्ना 9 गोली खाकर भी बच गया था, मुर्दा जिंदा हो चुका था
मुख्तार से फरमान मिल जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को खत्म करने की साजिश रची. और उसी के चलते 29 नवंबर 2005 को माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कहने पर मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत की नींद सुला दिया. उसने अपने साथियों के साथ मिलकर गाजीपुर के भांवरकोल इलाके में कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर AK47 से 400 गोलियां बरसाई थी. इस हमले में गाजीपुर से विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे 6 अन्य लोग भी मारे गए थे. पोस्टमार्टम के दौरान हर मृतक के शरीर से 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थी. इस हत्याकांड ने सूबे के सियासी हलकों में हलचल मचा दी. हर कोई मुन्ना बजरंगी के नाम से खौफ खाने लगा. इस हत्या को अंजाम देने के बाद वह मोस्ट वॉन्टेड बन गया था.
भाजपा विधायक की हत्या के अलावा कई मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस, एसटीएफ और सीबीआई को मुन्ना बजरंगी की तलाश थी. इसलिए उस पर सात लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया. उस पर हत्या, अपहरण और वसूली के कई मामलों में शामिल होने के आरोप है. वो लगातार अपनी लोकेशन बदलता रहा. पुलिस का दबाव भी बढ़ता जा रहा था.
यूपी पुलिस और एसटीएफ लगातार मुन्ना बजरंगी को तलाश कर रही थी. उसका यूपी और बिहार में रह पाना मुश्किल हो गया था. दिल्ली भी उसके लिए सुरक्षित नहीं था. इसलिए मुन्ना भागकर मुंबई चला गया. उसने एक लंबा अरसा वहीं गुजारा. इस दौरान उसका कई बार विदेश जाना भी होता रहा. उसके अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ते भी मजबूत होते जा रहे थे. वह मुंबई से ही फोन पर अपने लोगों को दिशा निर्देश दे रहा था.
लेकिन 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मलाड इलाके में नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया था. माना जाता है कि मुन्ना को अपने एनकाउंटर का डर सता रहा था. इसलिए उसने खुद एक योजना के तहत दिल्ली पुलिस से अपनी गिरफ्तारी कराई थी
मुन्ना के बारे में कहा जाता है है कि उसने अपने आपराधिक जीवन में 50 से अधिक हत्याएं की थी
झांसी जेल में बंद मुन्ना बजरंगी को 8 जुलाई 2018 को पूर्व बसपा विधायक लोकेश दीक्षित से रंगदारी के मामले में पेशी के लिए बागपत लाया गया था. 9 जुलाई 2018 को सुबह करीब 6:30 बजे एक झगड़े के दौरान उसी जेल में बंद पश्चिम यूपी के नामी डॉन सुनील राठी ने गोली मारकर मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी. और इसी के साथ मुन्ना बजरंगी का नाम इतिहास बन चुका था
कुख्यात हिस्ट्रीशीटर रहे मुन्ना बजरंगी पर पूर्व भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत लूट तथा अपहरण समेत अनेक जघन्य अपराधों के 40 मुकदमे दर्ज थे.