#मुरादाबाद में सपा की अंदरूनी लड़ाई सामने आई, अखिलेश यादव ने की बड़ी कार्रवाई, डीपी यादव पर गिरी गाज#
मुरादाबाद लोकसभा सीट पर टिकट को लेकर चले घमासान के बाद भी समाजवादी पार्टी की गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही थी। सांसद एसटी हसन का टिकट कटने से खफा जिलाध्यक्ष डीपी यादव और उनकी टीम, सपा-कांग्रेस गठबंधन की प्रत्याशी रुचि वीरा को चुनाव लड़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। चरम पर पहुंची गुटबाजी से हाईकमान परेशान था।
सोमवार को सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने जिलाध्यक्ष पद से डीपी यादव को हटा दिया। उनके स्थान पर जयवीर यादव को तीसरी बार जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कई महीने की कवायद के बाद 24 मार्च को तिथि के दो दिन पहले डा. एसटी हसन के टिकट की घोषणा करके सिंबल दे दिया था। लेकिन, 26 मार्च को सपा के राष्ट्रीय महासचिव मुहम्मद आजम खां की करीबी बिजनौर की पूर्व विधायक रूचि वीरा को सपा ने प्रत्याशी घोषित कर दिया। इधर, डा. एसटी हसन ने नामांकन करा दिया।
रूचि वीरा को मिला था सिंबल
नामांकन के अंतिम दिन 27 मार्च को रूचि वीरा ने सपा के सिंबल पर नामांकन पत्र दाखिल कराया। हालांकि, नामांकन का समय समाप्त होने के बाद डा. एसटी हसन को ही फिर से प्रत्याशी बनाए जाने का पत्र भी आ गया था। इसे लेकर मुरादाबाद में सपा की सियासत गरमा गई। तत्कालीन जिलाध्यक्ष डीपी यादव ने अपने बयान में सांसद डा. एसटी हसन को ही अपना प्रत्याशी बताया था। 28 मार्च को डा. हसन का पर्चा खारिज हो गया है। इसके बाद से गुटबाजी और बढ़ गई।
जयवीर सिंह यादव और पूर्व महानगर अध्यक्ष शाने अली शानू ने पार्टी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाना शुरू कर दिया। डीपी यादव और उनकी टीम शांत होकर बैठ गई। महानगर अध्यक्ष इकबाल अंसारी और उनकी टीम भी प्रचार से गायब दिखाई दी। अगली पंक्ति में खड़े रहने वाले करूला क्षेत्र के पूर्व पार्षद भी चुनाव लड़ाने नहीं आए। गुटबाजी से हाईकमान भी चिंतित था। प्रत्याशी ने भी डीपी यादव समेत कई नेताओं की चुनाव प्रचार में सहयोग नहीं करने की शिकायत कर दी।
डीपी यादव को हटाया
सोमवार को प्रदेशाध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने सपा मुखिया के निर्देश पर डीपी यादव को हटाकर जयवीर यादव को जिलाध्यक्ष मनोनीत कर दिया है। पूर्व जिलाध्यक्ष की 65 सदस्यीय कमेटी है। इसके संबंध में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है, हालांकि जिलाध्यक्ष बदलने के साथ ही कमेटी के पदाधिकारी स्वत: ही हट जाते हैं। उधर, डीपी यादव पर कार्रवाई के बाद महानगर अध्यक्ष पर भी तलवार लटकी हुई है। बहनोई से फिर साले को मिली जिलाध्यक्ष की कुर्सी डीपी यादव और जयवीर यादव के बहनोई हैं। लेकिन, सियासत दोनों अपने-अपने अंदाज में करते हैं।
ब्लाक प्रमुख और पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल नहीं हो पाने से बदनामी के बाद सपा मुखिया ने 12 अगस्त 2021 को जयवीर सिंह को हटाकर डीपी यादव को जिलाध्यक्ष बनाया था। डीपी यादव के कार्यकाल में विधानसभा चुनाव हुए। सपा के पांच विधायक चुने गए तो उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया। हालांकि, वह पार्टी की गुटबाजी समाप्त करने में नाकाम रहे। उन्हें प्रोफेसर साहब का आशीर्वाद प्राप्त था। पार्टी के ही कुछ लोगों का कहना है कि उनके द्वारा कभी गुटबाजी समाप्त करने का प्रयास भी नहीं किया गया।
तीसरी बार जिलाध्यक्ष बने जयवीर
जयवीर यादव तीसरी बार जिलाध्यक्ष बने हैं। छात्र राजनीति से आए जयवीर का पहला कार्यकाल बहुत छोटा रहा। दूसरी बार में तीन साल जिलाध्यक्ष रहे। असली खिलाड़ी तो पर्दे के पीछे है लोकसभा चुनाव के बीच डीपी यादव की कुर्सी चले जाने के पीछे का असली खिलाड़ी तो कोई और है। एक गुट के नेता डीपी यादव को हटवाने में लगे ही थे। रुचि वीरा के प्रत्याशी घोषित होने के बाद सीधा हाईकमान के फैसले को चुनौती जिलाध्यक्ष के लिए खतरा बन गया। इसका फायदा उठाकर ऐसी उठापटक हुई कि कुर्सी गंवानी पड़ी। बताया जा रहा है कि सीतापुर जेल से सपा मुखिया के पास पहुंची चिट्ठी ने कुछ कमाल किया है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया का फैसला है। इसका स्वागत करता हूं। उन्होंने ही जिलाध्यक्ष बनाकर पार्टी काे चलाने की जिम्मेदारी दी थी। उनके आदेश से ही हटा दिया गया। कोई नहीं पार्टी का सिपाही हूं। कार्यकर्ता की तरह काम करता रहूंगा। डीपी यादव, पूर्व जिलाध्यक्ष, सपा
सपा मुखिया ने मुझ पर विश्वास करके तीसरी बार जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी है। उनका धन्यवाद। सभी को साथ लेकर चलूंगा। मेरे सामने सपा प्रत्याशी को चुनाव जिताकर संसद भेजना सबसे बड़ी चुनौती है। पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से अपील है कि चुनाव में जुट जाएं। जयवीर सिंह यादव