#रामलला के दर्शन के बाद मैंने पैगाम-ए- मोहब्बत का संदेश दिया, उन्हें अपना इलाज कराना चाहिए : इलियासी#
अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान में शामिल होने पर आल इंडिया इमाम आर्गनाइजेशन के चीफ इमाम डा. इमाम उमेर अहमद इलियासी कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। घृणित अभियान व जान से मारने की धमकी के साथ उनके विरुद्ध फतवा भी जारी हुआ है पर इमाम इससे डरते नहीं हैं, कहते हैं कि उनके लिए इंसानियत और राष्ट्र सर्वोपरि है, इसलिए वह कट्टरता के विरुद्ध सद्भाव का संदेश देते रहेंगे।
यह अचानक तब भी चर्चा में आए थे, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत उनसे मिलने कस्तूरबा गांधी मार्ग मस्जिद स्थित इमाम हाउस पहुंचे थे, तब संघ प्रमुख के व्यक्तित्व से ओतप्रोत इमाम ने उन्हें राष्ट्रपिता की संज्ञा दी थी। तब भी उनके विरुद्ध घृणित अभियान चला था।
ऐसे में पूरे मामले, देश में मुस्लिमों की दशा-दिशा, संघ और भाजपा के साथ विपक्षी दलों के प्रति उनके नजरिये समेत अन्य पहलुओं पर नई दिल्ली के उप मुख्य संवाददाता नेमिष हेमंत ने उनसे विस्तारपूर्वक चर्चा की। बातचीत के प्रमुख अंश…
प्राण-प्रतिष्ठा अवसर पर आप अयोध्या में थे, जबकि कई मुस्लिम संगठन और विपक्षी राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया था। ऐसे में आप क्या सोचकर गए और अनुष्ठान में उपस्थिति के दौरान कैसी अनुभूति हो रही थी?
राम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण मिला था। सच तो यही है कि निमंत्रण मिलने के बाद मैं जाऊं कि न जाऊं, इस पर विचार करने में दो दिन लगाए। यह मेरी जिंदगी का बड़ा फैसला था, जिस पर विचार के लिए किसी और को शामिल नहीं कर सकता था, इसलिए न परिवार से चर्चा की और न अपने संगठन के लोगों से।
यह विमर्श केवल मेरे और खुदा (ईश्वर) के बीच था। जो बात मन में समझ में आई कि राष्ट्रहित में और आपसी सौहार्द के लिए मुझे जाना चाहिए। यह फैसला फौरन लिया और अयोध्या चला गया। अयोध्यावासियों ने मेरा बड़े स्तर पर स्वागत किया। साधु- संतों ने मुझसे मिलकर मोहब्बत का इजहार किया।
इसी तरह ट्रस्ट के लोगों ने, हर किसी ने खुशियों की नजर से देखा। वहां मुझे आभास हुआ कि इसी का नाम भारत है, जबकि यहां से निकलने से पहले दिमाग में कई आशंकाएं चल रही थीं कि वहां पर मैं अकेला इमाम होऊंगा।
वहां सारे लोग भगवा वाले मिलेंगे। मेरे साथ जाने क्या व्यवहार होगा, लेकिन जब मैं पहुंचा तो एक एहसास हुआ कि हम सब एक ही हैं। जो सनातनी सौहार्द व प्यार मिला, वह अद्भुत था। राम के भारत से मिला, जो नवीन, उत्तम और श्रेष्ठ है। अब हिंदुओं पर ज्यादा जिम्मेदारी है कि मंदिर तो बन गया अब वह राम के चरित्र को आम करें।
रामलला के दरबार में जाने तथा मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताने पर आप कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए हैं। फतवा जारी हुआ है, क्या है पूरा मामला?
रामलला के दर्शन के बाद निकलते ही मैंने पैगाम-ए- मोहब्बत का संदेश दिया। जो दिया, उसके मुख्य बिंदु थे कि हमारी जातियां जरूर अलग हो सकती हैं। पूजा पद्धति, इबादत और धर्म भले ही अलग हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा धर्म इंसान और इंसानियत का है। आओ हम सब मिलकर भारतीयता को मजबूत करें।
राष्ट्र को मजबूत करें, लेकिन जिन लोगों के जेहन में कट्टरता थी, जो देश में अमन, चैन, मोहब्बत नहीं चाहते। उन्हें मेरा पैगाम पसंद नहीं आया और देश के विभिन्न जगहों से अलग- अलग माध्यमों से मुझे धमकाया जाने लगा, गालियां दी जाने लगीं। यह सिलसिला मेरे लिए काफी तकलीफदेह था। इस बीच में एक फतवा आता है।
मोहम्मद साबिर हुसैनी नाम से जारी फतवा इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हुआ। यह मेरे पास भी आता है। वो कुफ्र का फतवा, जिसे इस्लाम में सबसे अधिक घातक माना जाता है। इसकी सजा ज्यादा सख्त होती है, जिसको देखकर मैं और परेशान हो गया। फतवे में तीन आधार गिनाए गए हैं।
पहले में कहा गया कि आप गैर मुस्लिम के यहां उनके भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा में गए। आप मुख्य इमाम भारत हैं और एक मस्जिद के इमाम भी, इसलिए आपने वहां जाकर इस्लाम के विरुद्ध काम किया है। दूसरा गुनाह कि आपने इंसान और इंसानियत को धर्म से ऊपर कहा। तीसरा, आपने राष्ट्र को धर्म से ऊपर बता दिया।
क्या उनके यह आरोप इस्लाम सम्मत नहीं है?
नहीं, इंसान का एक चरित्र इंसानियत का होता है, मैंने उसे धर्म से ऊपर इसलिए कहा, क्योंकि इंसान तब तक अच्छा हिंदू या मुस्लिम नहीं बन सकता है, जब तब कि वह पहले अच्छा इंसान नहीं बनता है।
दूसरे, राष्ट्र सर्वोपरि की बात भी इस्लाम विरुद्ध नहीं है, क्योंकि यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख व इसाई समेत हर कोई अपने-अपने तरीके से इबादत करता है। सबको इबादत की आजादी है, लेकिन जब बात देश की आती है तो हम सभी धर्मों से ऊपर उठ जाते हैं।
हिंदू, मुसलमान न होकर, हम सब भारतीय हो जाएं तो उसमें एकता आती है, इसलिए मैंने कहा कि हमें धर्मों से ऊपर उठकर भारत और भारतीयता को मजबूत करना है। वहीं, यह कि हम भारत में रहते हैं। यहां शरिया कानून नहीं है। अगर मुफ्ती को लगता है कि मेरा यह फैसला सही नहीं है, तो उन्हें अपना इलाज कराना चाहिए।
इन धमकियों से क्या आपको डर नहीं लगता है?
डर तो सभी को लगता है, क्योंकि ऐसे लोग सिरफिरे होते हैं, जिनका मकसद आपस में नफरत फैलाना ही होता है जैसे कोई आतंकवादी हो। वो भी आतंकवादी की शक्ल में आते हैं। मेरा फोन नंबर और पता सार्वजनिक हो गया है। 90 प्रतिशत तक मुसलमान मुझसे नाराज हो गए हैं।
आम चुनाव नजदीक हैं। कहीं ये विरोधी शक्तियां सक्रिय हो गईं और मुझ पर हमला हो गया तो देश के अंदर हालात खराब हो सकते हैं। मैंने कहा है कि राष्ट्र के नाम अगर मेरी शहादत हो जाती है तो मुझे मंजूर है, लेकिन उन लोगों के सामने झुकना मंजूर नहीं है।
इसके पहले भी कई मौकों पर आप कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। सरसंघचालक मोहन भागवत को आपके द्वारा ”राष्ट्रपिता” संबोधित करने पर विदेश तक से धमकियां मिली थीं। आखिरकार संघ प्रमुख में ऐसा आपको क्या दिखता है?
जब हम एक-दूसरे के यहां आते- जाते हैं, तो गलतफहमियां दूर होती हैं। इसका सुबूत है कि मोहन भागवत जी इमाम हाउस पर मुझसे मिलने आए थे और उनके लिए मैं प्राण-प्रतिष्ठा के मौके पर अयोध्या गया। मोहन भागवत देश के लिए देश हित में मुझसे मिलने आए थे।
मैं, भी अयोध्या यहीं सब सोच-विचार कर गया था। जब राष्ट्र के साथ विचार और हित जुड़ जाता है, तो इसका लाभ निचले स्तर पर भी मिलना शुरू हो जाता है।
मुझे भागवत का यह नजरिया बहुत अच्छा लगता है। बेहतर समझ आता है। वह सरल हैं, संत हैं। वह पढ़ाई छोड़कर संघ में आए और राष्ट्र के लिए समर्पित हुए। उनको कोई लालच प्रधानमंत्री या मंत्री का नहीं था। उनमें मेरा देश, मेरा राष्ट्र का भाव था और जिसके मन में राष्ट्र हो, राष्ट्र चिंतन हो तो वह संत ही हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों-कार्यप्रणाली को एक मुस्लिम विद्वान-उलेमा होने के नाते किस तरह से देखते हैं?
दशकों तक मुसलमानों को संघ से डरा कर रखा गया, लेकिन जब मैं संघ के नजदीक गया। संवाद शुरू हुआ, आपस में मिलना-जुलना शुरू हुआ तो मैं उन लोगों को जो संघ से दूर रहते हैं, उन्हें अपने अनुभव से बताना चाहता हूं कि संघ मुसलमानों का दुश्मन नहीं है।
वो पुरानी राजनीतिक पार्टियां थीं, जिन्होंने 70 सालों तक मुसलमानों को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया और डरा कर रखा कि उधर मत जाना, उधर तुम्हारा दुश्मन संघ है, जबकि संघ राष्ट्रवादी, राष्ट्र विचारधारा का संगठन है, जो राष्ट्र के प्रति समर्पित है, जिनका मकसद अपनी संस्कृति को बचाना है।
अच्छी बात है कि विहिप आपके साथ खड़ा हुआ है, लेकिन खुद को मुस्लिमों का रहनुमा तथा अपने आपको पंथ निरपेक्ष बताने वाले राजनीतिक दल व नेता आपके साथ नहीं हैं?
आपने सही कहा। यह काम मैंने राष्ट्र हित में किया है, जबकि सभी ने खामोशी अख्तियार की है। खामोशी को भी सहमति माना जाता है। तमाम मुस्लिम तंजीमों से मेरा सवाल है कि वो किसके साथ खड़े हैं, नफरत के या मोहब्बत वालों के साथ।
ऐसे लोग जो आपकी बातों का विरोध करते हैं, उन्हें आप कहते हैं कि पाकिस्तान चले जाएं?
मैंने यह बात कही और मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं, क्योंकि देश में कई लोग ऐसे हैं जो रहते यहां हैं, खाते यहां की हैं, लेकिन गाते पाकिस्तान की हैं। जो राष्ट्र के विरुद्ध नफरत पैदा करते हैं या मोहब्बत में रुकावट बनते हैं। उनके लिए यह संदेश है। जो राष्ट्रवादी और देशभक्त हैं। उन्हें जाने की कहां जरूरत है।
राम मंदिर का मामला तो सुलझ गया है, मथुरा व काशी पर विवाद बरकरार है। एएसआइ के सर्वेक्षण में ज्ञानवापी में मंदिर के स्पष्ट चिह्न मिले हैं। आपकी क्या राय है?
मेरा वह विचार है, जो हर भारतीय का होना चाहिए। मेरा कहना यह है कि किसी भी मसले का हल संवाद ही है। बैठकर, बातचीत के जरिए किसी भी मसले का हल निकाला जा सकता है। झगड़े होते हैं, फसाद होता है।
आखिर में टेबल पर ही बैठा जाता है, ऐसे में क्यों न पहले से ही आपस में संवाद, समन्वय बना लें। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है राष्ट्र निर्माण। अगर आप राष्ट्र निर्माण करेंगे। देश होगा तो मंदिर भी होगा, मस्जिद होगा। राष्ट्र निर्माण में योगदान दें। जिस दिन भारतीय बन जाएंगे हमारा भारत विश्व गुरु बन जाएगा।
क्या अब तक उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मुस्लिमों को काशी और मथुरा से दावा छोड़ देना चाहिए, ताकि एक नए युग की शुरुआत हो? यह राय मुस्लिम समाज के एक वर्ग से भी आ रही है?
मेरा मानना है कि हमें राष्ट्र निर्माण की तरफ जाना चाहिए, बाकी मसले बैठकर हल होना चाहिए। दोनों ओर से संवाद ईमानदारी से होना चाहिए। राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह धर्म का विषय है, मंदिर-मस्जिद का है। ऐसे में संवाद में मस्जिद-मंदिर वाले, पंडित और इमाम बैठें। पहल सरकार करें। इसको राजनीति मुद्दा बनाएंगे तो नहीं सुलझेगा।
आम चुनाव नजदीक है, मोदी सरकार के कामकाज को किस तरह आंकते हैं? नरेन्द्र मोदी के पदारूढ़ होने के बाद देश में मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में क्या बदलाव आये हैं?
यकीनन, मोदी जी की हुकूमत में आपने देखा होगा कि चाहे बच्चियों की योजना हो या रसोई गैस, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य योजनाएं हों, सबसे अधिक लाभ मुसलमानों को मिला है।
इस बात से सब सहमत हैं। देश के मुसलमानों से कहना चाहता हूं कि मेरे कहने से एक बार विचार कर लो। मुझे लगता है कि यह देश हित में होगा। सबको फायदा होगा।
आप विपक्षी दलों को भी निशाने पर लेते हैं? किस आधार पर कहते हैं कि उन्होंने देश के मुस्लिमों को ठगा?
यह सत्य है। उन्होंने हमें गरीब, पिछड़ा बना दिया। भाजपा तो आज आई है। रंगनाथ मिश्र की रिपोर्ट तो उनके जमाने में आई थी। उससे साबित क्या हुआ कि 70 साल में देश का मुसलमान कमजोर हो गया, गरीब हो गया।
वो हमें कमजोर करते गए, हमें डराते गए। अब मुसलमान समझ गया है। वह किसी के बहकावे और डर में नहीं आने वाला है। ये राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों को डराती हैं, धमकाती हैं कि वो (भाजपा) तुम्हें निकाल देंगे, लेकिन अब ऐसा नहीं होना है।
शेहला रशीद जैसे लोगों के विचार बदल रहे हैं? जो लोग विरोध में थे वह मोदी जी के पक्ष में खड़े हो रहे हैं।
मुझे तो लगता है कि पूरा भारत बदल रहा है। अनुच्छेद-370 के रहते और हटने के बाद कश्मीर गया था। पहले जाने पर वहां के लोग कहते थे कि क्या, भारत से आए हैं और अब कहते हैं कि क्या दिल्ली से आए हैं, इसलिए भी भारत के मुस्लिमों को पुनर्विचार करना चाहिए। मैं बार- बार कह रहा हूं कि अब वह समय आ गया है।
सीएए को लेकर एक बार फिर सरगर्मी शुरू हो गई है?
देखिए, विपक्ष का काम विरोध करना ही है। वर्ष 2014 से लेकर आज तक उनका एक भी बयान पक्ष में नहीं आया।
विपक्ष की बातों का महत्व तब होता है जब अच्छे काम को अच्छा और खराब काम को खराब कहते। जहां तक सीएए की बात है, तो जो भारत के नागरिक हैं उन्हें सीएए से डरने की जरूरत नहीं है। डरना उन्हें है जो भारत में आए हुए हैं और वह बाहर के हैं। हमारे पूर्वज और हमारा वंश तो यहीं का है।