नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को देश में अगले साल होने वाले आम चुनाव के पहले परिसर में एक सेल्फी प्वॉइंट स्थापित करने का निर्देश दिया है। निर्देश में कहा गया है कि सेल्फी प्वॉइंट के पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को रखना है।
यूजीसी के निर्देश के मुताबिक परिसर के अधिकारियों को न सिर्फ सेल्फी प्वॉइंट स्थापित करना है बल्कि छात्रों और आगंतुकों को सेल्फी प्वॉइंट पर सेल्फी लेने और उन्हें मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा करने के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करने को भी कहा गया है। यानि यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को वस्तुतः भाजपा के अनौपचारिक प्रचारक बनने का आदेश दिया है।
दरअसल, यूजीसी ने मोदी सरकार के कार्यकाल में “विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों” को देश भर में चर्चा का विषय बनाने और इस प्रकार “सामूहिक गौरव की भावना को बढ़ावा देने” के लिए पीएम मोदी के बैकग्राउंड वाले सेल्फी को सोशल मीडिया पर प्रसारित करने को कहा है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या वास्तव में भारत विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी उपलब्धियां हासिल कर चुका है, जिसकी चर्चा होनी चाहिए। दूसरी बाच यह है कि जब भारत विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुका है तो देश की जनता, पत्रकार, छात्र, युवा औऱ समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों की नजर में वह उपलब्धियां बची कैसे रह गयीं?
कई शिक्षाविदों ने यूजीसी पर अकादमिक संस्थानों को “व्यक्ति विशेष के आभामंडल बनाने” की दौड़ में शामिल करने का आरोप लगाया, जिसका “उनसे कोई लेना-देना नहीं” होना चाहिए।
सभी भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और सभी महाविद्यालयों के प्राचार्यों को शुक्रवार को भेजे गए यूजीसी सचिव मनीष जोशी के एक पत्र में कहा गया है कि “युवाओं की ऊर्जा और उत्साह का उपयोग करने, उनके दिमाग को विभिन्न क्षेत्रों में भारत की प्रगति से प्रेरणा लेने का एक अनूठा अवसर है।”
पत्र में लिखा गया है कि आइए! हम आपके संस्थान के भीतर एक ‘सेल्फी प्वॉइंट’ स्थापित करके हमारे देश द्वारा की गई अविश्वसनीय प्रगति का जश्न मनाएं और इसका प्रसार करें। ‘सेल्फी पॉइंट’ का उद्देश्य युवाओं में विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों, विशेषकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत नई पहलों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
पत्र में कहा गया है: “आपसे अनुरोध है कि सामूहिक गौरव की भावना को बढ़ावा देते हुए, छात्रों और आगंतुकों को इन विशेष क्षणों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कैद करने और साझा करने के लिए प्रोत्साहित करें।”
यूजीसी ने सेल्फी प्वॉइंट के लिए कई तरह के डिजाइन सुझाए हैं। प्रत्येक डिज़ाइन एक विशेष विषय के लिए समर्पित है, जैसे शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, विविधता में एकता, स्मार्ट इंडिया हैकथॉन, भारतीय ज्ञान प्रणाली, बहुभाषावाद, उच्च शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में भारत का उदय।
यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को परिसर के महत्वपूर्ण व रणनीतिक स्थान पर सेल्फी प्वाइंट स्थापित करने का सुझाव देते हुए कहा कि सेल्फी प्वॉइंट का 3डी लेआउट होना चाहिए।
यूजीसी के इस फरमान से देश के कई विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और शिक्षाविद नाराज है। अधिकांश शिक्षकों का कहना है कि देश की हर महत्वपूर्ण और सामन्य उपलब्धि के लिए सिर्फ प्रधानमंत्री को श्रेय देने की कोशिश हो रही है। मीडिया, विज्ञापनों, उद्घाटन और हर योजना के शुरू करने और पूर्ण करने के पीछे पीएम मोदी की कर्मठता को दर्शाया जा रहा है।
देश में जहां कहीं जो कुछ हो रहा है उसका एक व्यक्ति का ‘आभामंडल’ बनाने के लिए प्रचार किया जा रहा है। सरकार सार्वजनिक संस्थानों का उपयोग व्यक्ति प्रचार में कर रहा है।
देश के जाने-माने विश्वविद्यालयों के कई प्राध्यापकों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि “कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सरकार या यूजीसी को शैक्षणिक संस्थानों को इस तरह के प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कहने का अधिकार देता हो।”
एक शिक्षाविद ने कहा कि प्रधानमंत्री की तस्वीरें कई चैनलों के माध्यम से प्रसारित की गईं, जिनमें कोविड वैक्सीन प्रमाणपत्र भी शामिल हैं। रोज़गार मेलों में सेल्फी प्वॉइंट स्थापित किए गए हैं, जहां नव नियुक्त सरकारी कर्मचारियों-या पदोन्नत सेवारत कर्मचारियों-को मोदी कट-आउट के सामने खड़ा होना पड़ता है और तस्वीरें खींचनी पड़ती हैं।
एक प्राध्यापक ने कहा कि “एक बहुत मजबूत धारणा बनाई जा रही है कि इन सभी गतिविधियों के लिए केवल एक ही नेता जिम्मेदार है। यह चुनाव को ध्यान में रखते हुए भोले-भाले मतदाताओं को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है।”
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य ने कहा कि सेल्फी प्वॉइंट विश्वविद्यालय में विभिन्न विचारों को पोषित करने का स्थान है। लेकिन यदि किसी एक विचार या व्यक्ति को बढ़ावा दिया जा रहा है तो यह विश्वविद्यालय या संस्थान के दीर्घकालिक हितों के साथ समझौता करना है।
एक प्राध्यापक ने कहा कि यूजीसी ऐसे परिपत्र जारी करता रहता है लेकिन परिसर प्रशासन उन्हें नजरअंदाज करने के लिए स्वतंत्र है। शैक्षणिक संस्थानों को ऐसी सलाह पर ध्यान नहीं देना चाहिए। जो संस्था को किसी नेता का चापलूस बनने को कहता है।
(जनचौक की रिपोर्ट।)