#रामनगर की रामलीला का नौवां दिन: कैकेयी ने भरत के लिए राज्य और राम के लिए मांगा वनवास, पीछे चल पड़े अयोध्यावासी#

अवध उजारि कीन्हि कैकेईं, दीन्हिसि अचल बिपति कै नेईं…अर्थात कैकेयी ने भरत के लिए राज्य और राम के लिए वनवास मांगकर अयोध्या को उजाड़ कर रख दिया। इसके साथ ही अयोध्या में विपत्ति की अचल नींव डाल दी। शुक्रवार को रामनगर की रामलीला के दौरान नौवें दिन के आठवें प्रसंग में राज्योभिषेक सभारंभ और कोपभवन की लीला का मंचन हुआ।
आस्था-श्रद्धा, भक्ति और पंरपरा के चार स्तंभों पर खड़ी रामनगर की रामलीला रंगकर्म के बजाय प्रभु श्रीराम की आराधना का जतन है। यह भाव जहां स्वरूपों-संयोजकों में नजर आता है तो इसका मर्म लीलाप्रेमियों के दिलों में भी उतरता जाता है। कभी खुशियां बाहें फैलाएं निहाल करती हैं तो पलकों की कोर से भी श्रद्धा की डोर जुड़ती है। गृहस्थ हो या साधु-संयासी हर एक की 31 दिनी अनुष्ठान में हर स्वरूप देवरूप में नजर आता है।

नौवें दिन के आठवें रामलीला में प्रसंगानुसार भक्तों की भाव भंगिमा लगातार बदलती गई। इसमें प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक की सूचना के साथ लीलाप्रेमी आनंदानुभूति से मगन मन झूम उठे। टार्च की रोशनी में रामचरित मानस की चौपाइयां गुनगुनाने के उनके अंदाज में यह भाव नजर आया तो कैकेयी के कोप भवन जाने और उसका उद्देश्य समझ आने पर ह्रदय में वेदना का अहसास भी कराया। दशरथ के विलाप भरे संवाद समेत अवध कांड के मार्मिक प्रसंगों पर श्रद्धालुओं के पलकों की कोरें गीली हो गईं। पिता के वचनों का मान रखने की खातिर प्रभु राम के सहर्ष वन जाने की प्रतिबद्धता और नई नवेली दुल्हन सीता के भी सुख-वैभव त्याग इसे अपना भाग्य मानते हुए पति के साथ निभाने की प्रतिबद्धता विभोर कर गई।

राम को वन जाते देख, पीछे चल पड़े अयोध्यावासी

जाल्हूपुर के टूड़ीनगर की रामलीला में शुक्रवार को राम वनगमन, निषाद मिलन, लक्ष्मणकृत गीता उपदेश का मंचन हुआ। राम माता कौशल्या से मिलकर प्रणाम करते हैं। माता उन्हें गले लगाकर आशीर्वाद देती हैं। इधर लक्ष्मण और सीता भी साथ जाने को तैयार हो जाते हैं। कैकेयी के कटु वचन सुनकर राजा दशरथ अचेत हो जाते हैं। राम उन्हें प्रणाम करके गुरु वशिष्ठ को अयोध्या की देखरेख करने के लिए कहकर वन चल पड़ते हैं।

राम को वन जाता देख लीला प्रेमियों की आंखें छलक पड़ीं, लेकिन यह देख देवता प्रसन्न हो उठे। होश में आने पर दशरथ सुमंत से पूछते हैं कि राम वन चले गए। वे सुमंत को राम के पास भेजते हैं। रात बीतने के बाद सुबह श्रीराम सुमंत से कहते हैं कि रथ इस प्रकार चलाएं कि मार्ग में पहिये के निशान न मिलें। श्री राम लक्ष्मण और सीता जी शृंगवेरपुर पहुंचते हैं। निषादराज समाचार पाकर कंदमूल लेकर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़ते हैं। उन्हें अपने गांव ले जाना चाहते हैं, लेकिन राम वन में ही रहने को कहते हैं। भोजन के बाद राम, सीता भूमि पर शयन करते हैं। यह देख निषादराज रोने लगते हैं तो लक्ष्मण ने उन्हें मोह छोड़कर सीताराम के चरण कमल में अनुराग करने को कहते हैं। इस प्रकार रामगुन गाते-गाते सवेरा हो गया। राम जाग गए। यहीं पर भगवान की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया।