बीते कई दशक से सालाना एक सेंटीमीटर धंसता जोशीमठ अब कभी भी धंस सकता है।
यह बात खुद उसी सरकार ने साफ़ कर दी है, जिसने इस शहर की हत्या की। लेकिन इसके बाद क्या?
इसके बाद कर्णप्रयाग, गोपेश्वर का नंबर हो सकता है, या फिर घंसाली, मुनिस्यारी या धारचुला का? पौड़ी, नैनीताल और भटवारी को भी न भूलें।
यह भी न भूलें कि 2015 से 2020 के बीच उत्तराखंड ने बादल फटने और भारी बारिश के 7750 ज़ख्म झेले हैं।
इस देश में जो हो रहा है, वह शायद ईश्वर को भी मंजूर नहीं। जोशीमठ पहली मिसाल है।
तो क्या आप बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब के इस साल दर्शन नहीं कर पाएंगे? मुमकिन है, क्योंकि प्रवेशद्वार यानी जोशीमठ ढह रहा है।
वज़ह तो आप भी हैं। कार की टंकी फुल करवाकर जब आप पहाड़ बुला रहे हैं–लिखकर सेल्फी पेलते हैं तो सोचिए कि प्रकृति की गोद में किन ऐशो–आराम और सुविधाओं की चाहत में निकल पड़े हैं।
आपका ही पैसा चमोली, गढ़वाल, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी के पहाड़ों को होटलों, स्पा और बसाहट के बोझ से दबा रहा है।
कुछ साल पहले हिमाचल में मिले एक उत्तराखंडी ने मुझसे जब यह बात कही तो मेरा जवाब था, सैलानी गांव में लोगों के घरों में रहें। फाइव स्टार गिरा दिए जाएं। तब क्या आप जायेंगे?
दरारें तो कर्णप्रयाग में भी हैं। दिखाई नहीं जा रही हैं। पहाड़ चुपके से जान नहीं लेते। इशारा करते हैं। (तस्वीर देखिए)
चार धाम यात्रा हिंदुत्व के छिपे एजेंडे का खेल है। नुकसान लोगों का है, प्रकृति का है। नैनीताल शहर का भी है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता कि यह और कितनी बसाहट का दबाव झेल सकता है।
चार धाम सड़क की ज़िद में उजड़ते पेड़ और नदियों में बहाए जाते मलबे की न जाने कितनी चिंतित पोस्ट आपने मेरी वॉल पर देखी होगी। लेकिन सभी को जोशीमठ के धंसकने का इंतजार था।
जब भी हम भीमकाय बांधों के जमीन पर दबाव की बात करते हैं तो भ्रष्ट बाबू दांत निपोड़ते हैं। एमपी में तवा बांध के किनारों के दलदल आज भी गवाह हैं।
जब मोदी सरकार कानून बदलकर बिना पर्यावरण प्रभाव का आंकलन किए कॉर्पोरेट्स को जंगल काटने की अनुमति देती है तो गोदी मीडिया अपनी दलाली लेकर उसे मास्टरस्ट्रोक बताती है और आप एक जोशीमठ का इंतजार करते हैं।
इंतजार पूरा हुआ। मलबे पर बसा जोशीमठ मलबा होने जा रहा है। मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट 50 साल पहले आई थी, दबा दी गई। पहाड़ पर 3–4 मंजिला होटल की अनुमति देने में करोड़ों इधर–उधर होते हैं।
क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी। पैसा सबको प्यारा है। कानून मास्टरप्लान बनाकर तोड़े जाते हैं, क्योंकि अवाम चुप है। उसे भी सैलानी चाहिए, रोजगार चाहिए।
लेकिन ढहता जोशीमठ दिखा रहा है कि विकास के इस दुश्चक्र से ज्यादा शायद हम खुद धरती पर बोझ हैं।