हां मैं बेटी हूं ,हर दर्द बांट सकती हूं, फर्ज निभाती हूं ,हां मैं बेटी हूं

बेटी जो मां के रूप में ,बहन के रूप में, पत्नी के रूप में परिवार के लिए स्वर्ण धन से बढ़कर छाया का स्वरूप है !जिसकी छांव से परिवार का स्वाभिमान सम्मान बढ़ता है जो प्रकृति की वरदान और रिश्तो की पहचान है !

बेटी देश का अभिमान है हां मैं बैठी हूं ..

कहते हैं बेटियां घर की लक्ष्मी ही नहीं सरस्वती ही नहीं बल्कि सृजन करता भी हैं जो रिश्तो का सृजनात्मक स्वरुप के साथ-साथ बंधन को भी गांठ बनाकर परंपरा के साथ निभाती हैं !चाहे जितना भी कठिन से कठिन परिस्थिति हो कितनी भयावह असहनीय पीड़ा भी खुद में समेट कर दर्द को घोट जाती है!

देश में कई ऐसी बेटियां जिन्होंने अपने पिता का अंतिम संस्कार में कंधा देने से लेकर परिवार संचालन के लिए ड्राइवर जैसे पेशे व कई ऐसे काम को अंजाम दे रही हैं जो हमारे समाज में एक तरह से सम्मान की नौकरी नहीं समझी जाती लेकिन वह परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपना फर्ज निभा रही हैं !

आज हम एक ऐसी ही बेटी की बात कर रहे हैं जो अपने बच्चों का भरण पोषण के लिए कंधों पर दूरदराज से आए लोगों का बोझ उठाकर अपना परिवार पाल रही है हां मैं बेटी हूं !

इस बेटी को बारंबार प्रणाम , सनातन संस्कृति को वंदन

“कुली नंबर 36 हूं, इज्जत का खाती हूं”

45 मर्दों के बीच अकेली कुली है संध्या

“भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा हैं। जिंदगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया, लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर फौज में अफसर बनाना मेरा सपना है। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली नंबर 36 हूं और इज्जत का खाती हूं।”

यह कहना है 31 वर्षीय महिला कुली संध्या का। महिला कुली को देखकर हैरत में पड़ जाते हैं लोग मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली संध्या प्रतिदिन बूढ़ी सास और तीन बच्चों की अच्छी परवरिश का जिम्मा अपने कंधों पर लिए, यात्रियों का बोझ ढो रही है। रेलवे कुली का लाइसेंस अपने नाम बनवाने के बाद बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए साहस और मेहनत के साथ जब वह वजन लेकर प्लेटफॉर्म पर चलती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं और साथ ही उसके जज्बे को सलाम करने को मजबूर भी !

काम मजबूरी नहीं जीने का सहारा है !!