काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फीथिएटर में चल रहे काशी तमिल संगमम के मंच से सम्बोधित करते हुए विधायक कैन्ट सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि “काशी में आयोजित हो रहा यह काशी तमिल संगमम निश्चित रूप से उत्तर और दक्षिण की समृद्ध संस्कृति, परंपराएं, भाषा, बोलचाल, लोककला, खानपान और वेशभूषा का एक अद्भुत संगम बन रहा है।
पूरे महीने भर चलने वाला यह कार्यक्रम पूरी तरह से “एकभारत और श्रेष्ठ भारत” की भावना का एक सार्वजनिक उत्सव है। यह तमिलनाडु की भाषा तमिल और तमिलनाडु के लोगों की संस्कृति, रीति रिवाज, साहित्य, पूजा परम्परा, खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा को देखने और समझने का यह भव्य आयोजन साबित हो रहा है। साथ ही इस आयोजन में तमिलनाडु से आये प्रतिनिधियों और सहभागियों के लिए भी यह आयोजन विश्व की प्राचीनतम, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को भी नजदीक से जानने का एक अच्छा अवसर है। सच पूछा जाए तो यह आयोजन उत्तर भारत की आर्य संस्कृति और दक्षिण भारत की द्रविड़ संस्कृति का एक सम्मिलन है, जहां उत्तर और दक्षिण की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यत्मिक विरासत पर विद्वानों द्वारा विधिवत चर्चाएं तो होंगी ही, साथ ही आज की समकालीन स्थितियों पर भी अवश्य विभिन्न सत्रों में चर्चा होगी। जिससे उत्तर और दक्षिण को नजदीक से देखने का मौका मिलेगा।”
यह आयोजन काशी में ही क्यों हो रहा है, इसका एक विशेष कारण है। जैसा कि आप सभी जानते है कि काशी “एक लघु भारत” का स्वरूप है। यहां सदियों से विभिन्न परम्पराए फली-फूली हैं। अगर आप काशी के शिवाला, केदारघाट और हनुमान घाट मुहल्ले में जाएं तो लगेगा कि हम दक्षिण भारत के किसी कस्बे या शहर में हैं। वही खानपान, वही वेश-भूषा, कपड़े, वही चंदन और गुग्गुल की महक सब वहां मौजूद है।”
“अतः यह तमिल संगमम का आयोजन काशी और तमिल, दो अति प्राचीन संस्कृतियों का संगम है, जहां काशी और दक्षिण के बीच सदियों से चली आ रही पुरानी कड़ियों को फिर से जोड़ने, अपनी जड़ों को खोजने और उसकी पुष्टि का भी प्रयास हो रहा है। “लगभग पूरे एक माह चलने वाला यह प्रतिष्ठापरक आयोजन निश्चित रूप से हमारे ज्ञान, संस्कृति, साहित्य, संगीत,और रीति रिवाजों की समृद्ध परम्परा को करीब से समझने का अवसर है। यह आयोजन निश्चित ही अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होगा। यह आयोजन अवश्य ही काशी और तमिलनाडु के लोगो के बीच के आत्मीय सम्बन्धो को और प्रगाढ़ बनाएगा।
अतः “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” को केंद्र में रखकर आयोजित यह तमिल संगम प्राचीन भारत और वर्तमान समकालीन पीढ़ी के बीच एक सेतु का निर्माण करेगा साथ ही इसमे काशी और तमिल नाडु के वैदुष्य परम्पराओं जैसे साहित्य,ज्योतिष, आयुर्वेद, कर्मकांड, नृत्यसंगीत,वास्तु कला आदि पर भी चर्चा हो रही है।
मेरी बाबा विश्वनाथ से यही प्रार्थना है कि यह तमिल संगमम अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल हो। एक भारत, श्रेष्ठ भारत।
जय भारत, जय जय भारत।।
भारतमाता की जय।।