आजमगढ़ निजामाबाद में मजरूह सुल्तानपुरी की 102 वे जयंती पर किया गया श्रद्धा सुमन अर्पित

आजमगढ़ से अमित खरवार की रिपोर्ट

“मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर,लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया”।ये बातें निज़ामाबाद के प्रसिद्ध गुरुद्वारे के लंगर हाल में मजरूह सुल्तानपुरी के 102वें जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए इसकफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जितेंद्र हरि पांडेय ने कही।
फ़िल्म के सबसे बड़े दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मजरूह सुल्तानपुरी के जन्मदिन पर निज़ामाबाद कस्बे में प्रसिद्ध गुरुद्वारा के प्रांगण में उनके चाहने वाले लोगों ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि करते हुए उन्हें याद किया।इस मौके पर इसकफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जितेंद्र हरि पांडेय ने कहा कि मजरूह की शायरी में गरीबों, मजलूमों का दर्द झलकता था।बम्बई में मजदूरों की हड़ताल में एक ऐसी कविता उन्होंने ने पढ़ी जिससे नेहरू सरकार नाराज होकर उन्हें जेल में डलवा दिया।जेल से रिहा करने के लिए माफी मांगने का प्रस्ताव दिया गया।मार्क्स,लेनिन और कम्युनिज्म विचारधारा से प्रभावित कलमकार मजरूह सुल्तानपुरी ने जेल में सजा काटना मंजूर किया और कलम की ताकत के आगे जेल से रिहा होने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
गुरुद्वारा के मुख्यग्रंथी बाबा सतनाम सिंह ने कहा कि हम सब बेहद सौभाग्यशाली हैं कि ऐतिहासिक कस्बा और गंगाजमुनी संस्कृति के बीच मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को इसी कस्बा निज़ामाबाद में हुआ था।उन्होंने जीवनभर गरीबों, वंचितों और बेसहारा लोगों की बात अपने गीत और शायरी में किया।
इस मौके पर कमलेश कुमार श्रीवास्तव, डॉ इरफान,सेवादार अजय सिंह,रमनजीत सिंह,अब्दुल्लाह एडवोकेट, शैलेष, विशाल, सिकंदर,विक्कू आदि लोग मौजूद रहे।