हिन्दू स्कूल सिर्फ बनारस या उत्तर प्रदेश का ही नहीं, बल्कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माना जाता है
कोई भी संस्थान जब अपनी विरासत से सरकने लगता है तो उसे दरकने में देर नहीं लगती. सेंट्रल हिन्दू स्कूल सिर्फ बनारस या उत्तर प्रदेश का ही नहीं, बल्कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माना जाता है. वर्तमान से अधिक, यहाँ की विरासत ही इसकी वजह है.
पूरे देश से, खासकर उत्तर भारत के राज्यों से बच्चे यहाँ पढ़ने आते हैं. वे बच्चे नहीं जिनके पास तमाम गद्देदार सीट वाली मोटरसाइकिल और गाड़ियाँ हैं, बल्कि वे बच्चे जो साइकिल से या पैदल चलते हैं. ऐसे गरीब व मध्यम वर्ग के बच्चे यहाँ इसलिए दाख़िला पा लेते हैं क्योंकि एक परीक्षा होती है, जिसको वे उत्तीर्ण करते हैं. कोरोना के समय से इस परीक्षा की जगह ई-लॉटरी सिस्टम व बोर्ड एग्जाम मेरिट बेस्ड एडमिशन ने ले ली. जिसकी वजह से कई बच्चों के सपने चूर हुए, जो यहाँ आकर पढ़ना चाहते थे.
क्योंकि लॉटरी सिस्टम में आपकी मेहनत का नहीं, बल्कि किस्मत का बोलबाला होता है. और किस्मत इस सभ्यता में किसकी अच्छी रही है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है.
सीएचएस (सेंट्रल हिन्दू स्कूल) कोई ऐसा संस्थान नहीं है जो आपको “सड़क से उठाकर स्टार” बना देगा. ऐसी कोई ख़ासियत किसी संस्थान में नहीं है. लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों व ज़िलों से एंट्रेंस एग्जाम क्रैक करके आये बच्चों के बीच आप जब रहेंगे तब आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, अपनी कमियाँ पता चलेंगी. एक छात्र अपनी कमियाँ ढूंढने के लिए ही यहाँ पढ़ना चाहता है.
व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो सीएचएस ने मुझे कुछ अच्छे दोस्त दिए, कुछ अच्छे शिक्षक दिए. वह कुछ ही देगा, उसे बहुत कुछ आपको बनाना होगा. वहाँ सबकुछ अच्छा नहीं होगा, आपको कमियाँ दिखेंगी, दिखनी चाहियें. हमें किसी संस्थान का अंध-पुजारी या पुजारी नहीं बनना है.
लेकिन जब आज उस संस्थान पर यह चोट की जा रही है तब हम सभी को मिलकर इसपर बहस करने की ज़रूरत है, बात करने की ज़रूरत है, संवाद की ज़रूरत है.
कक्षा बारहवीं तक की पढ़ाई यहाँ होती है. कक्षा छः से बारह. एक बॉयज़ स्कूल है और एक गर्ल्स स्कूल. दोनों में यह लॉटरी प्रणाली चलाई जा रही है. जिसका कोविड केसेज में भारी गिरावट आने के बाद कोई तुक नहीं दिखता. घूमने-फिरने न जाना, स्कूल-कॉलेज बन्द, सैनिटाइजर लगाओ, मास्क पहनो जैसे रेस्ट्रिक्शन्स अब कम हो रहे हैं. ऐसे में एंट्रेंस एग्जाम न करवाकर ई-लॉटरी सिस्टम से किस्मत का खेल खेलना नागवार लगता है.
नार्लीकर, लोहिया, कमलापति त्रिपाठी, श्रीप्रकाश, जैसे कई बड़े नामों ने यहाँ से पढ़ाई की है. लॉटरी सिस्टम होता तो शायद ये लोग भी यहाँ नहीं पढ़ पाते.
सीएचएस को एक ब्रांड न बनाकर, उसकी जो विविधता है उसे जीवित रखने पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. ब्रांड अक्सर धोखा देते हैं. और यदि विविधता को जीवित रखना है तो प्रवेश परीक्षा करानी होगी जिससे सभी वर्गों से आये छात्र-छात्राओं को यहाँ पढ़ने का बराबर अवसर मिल सके.
जिस तरह से एक लंबी लड़ाई के बाद बीएचयू की साइबर लाइब्रेरी को 24 घण्टे खोलने की मांग को मानकर 21 घण्टे खोलने का फैसला लिया गया है, उसी तरह हमें पूरी उम्मीद है कि सीएचएस में परीक्षा कराकर तमाम छात्र-छात्राओं को प्रवेश का समान अवसर सुनिश्चित किया जाएगा.
मैं सीएचएस में कुल दो साल रहा, जिसमें से एक साल कोरोना में ही चला गया. सीएचएस से कई चीजें सीखीं, यह भी कि हर संस्थान के अंदर कमियाँ हो सकती हैं, आपको रोका जा सकता है, कई चीज़ों में आपको रोका जा सकता है, विरोध हो सकता है. लेकिन कभी सीएचएस के छात्र रहे लोहिया, श्रीप्रकाश, जैसे लोगों से ही फिर डटकर खड़ा होने का हौसला भी मिलता है.
वहाँ सुनता था कि– हम कुछ नहीं करते, ग़ज़ब करते हैं. इस ग़ज़ब में यदि आप असंख्य छात्रों के प्रवेश को रोकने की कोशिश कर रहे हैं तो यह ठीक नहीं है. इतना भी ग़ज़ब नहीं करना था.🙏
हम आंदोलित हैं और हमें यह उम्मीद है कि जल्द ही कुछ अच्छा फैसला लिया जाएगा इस दिशा में, जो ज़रूरी है.
शुक्रिया!