#ऑटिज्म नहीं है कोई बीमारी बच्चों का दे साथ#

बरेली
रिपोर्ट सुमित श्रीवास्तव

ऑटिज्म नहीं है कोई बीमारी बच्चों का दे साथ।

बरेली में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए रखी गई वर्कशॉप

भारत में 18 लाख बच्चे हैं इस से प्रभावित

होप लाइन संस्था की ओर से ऑटिज्म अवेयरनेस वर्कशॉप का आयोजन किया गया। ऑटिज़्म एक विकास संबंधी स्थिति (Developmental Disorder) है, जिसमें बच्चे का संवाद, सामाजिक संपर्क और व्यवहार सामान्य से अलग हो सकता है। कुछ बच्चों को बात करने में कठिनाई होती है।
कुछ बच्चे एक ही चीज़ बार-बार करना पसंद करते हैं।
उन्हें शोर, रोशनी या किसी विशेष स्थिति से परेशानी हो सकती है।

भारत में 18 लाख बच्चे हैं प्रभावित
आईहोप संस्था की कार्यकर्ता दीपमाला पांडे ने बताया कि भारत में लगभग 18 लाख बच्चे ऑटिज़्म से प्रभावित हैं। यह संख्या बड़ी है, लेकिन जानकारी की कमी के कारण कई बच्चों को सही समय पर मदद नहीं मिल पाती।
इस वर्कशॉप में गेस्ट स्पीकर चाइल्ड स्पेशलिस्ट की फाउंडर रमसा शमसी ने बताया कि किस प्रकार ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को पहचान सकते हैं तथा बच्चों के साथ किस प्रकार काम किया जाय कि बच्चे एक बेहतर व स्वावलंबी जीवन के सके।

समावेशी माहौल बनाना जरूरी
वन टीचर वन कॉल की फाउंडर दीपमाला पाण्डेय ने कहा कि
ऑटिज़्म को लेकर जागरूकता फैलाना और एक समावेशी माहौल बनाना हर किसी की ज़िम्मेदारी है। स्कूलों में समावेशी शिक्षा प्रणाली अपनाई जाए।समझ और सहानुभूति के साथ बच्चों और उनके परिवारों को अपनाया जाय। संस्था द्वारा विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए थेरेपी, काउंसलिंग और समर्थन केंद्र की जानकारी भी उपलब्ध करवाई गई।क्षकार्यक्रम में उपस्थिति वरिष्ठ पत्रकार व उद्यमी कृष्ण गोपाल राज ने कहा कि हमें मिलकर बच्चों के उत्थान के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।
तक्ष योगा की संस्थापक तक्षशिला द्वारा योग के प्रयोग से ऑटिज्म पीड़ित बच्चों में किस प्रकार शारीरिक वा मानसिक विकास में सहयोग लिया जा सकता है विषय पर चर्चा की गई। वर्कशॉप में शिखा अग्रवाल,प्रियंका शुक्ला,अशोक शर्मा,राजेश कुमारी, निवेदिता शर्मा,पूजा गंगवार,मीनाक्षी गंगवार, अन्नपूर्णा कुशवाहा,दीपक दुबे,रविन्द्र गंगवार,महेश पाण्डेय, सुरजीत सिंह, नीतेश पांडेय का विशेष सहयोग रहा।

यह कोई बीमारी नहीं है
इस दौरान इन्होंने बताया कि ऑटिज़्म कोई बीमारी नहीं, यह बच्चों के सोचने और समझने का एक अलग तरीका है। हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें समझें, उनकी मदद करें, और उनके लिए एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ वे खुशी और सम्मान के साथ जी सकें।