ऑनलाइन काम व निवेश करने पर अच्छी कमाई का लालच देकर ठगी करने वाले सात साइबर ठगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उनके पास से बड़ी संख्या में मोबाइल, सिमकार्ड और फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं। पुलिस इनके आपराधिक इतिहास की जानकारी जुटा रही है।
पकड़े गए साइबर ठगों के बारे में डीसीपी क्राइम चंद्रकांत मीणा ने बताया कि बीते साल 18 दिसंबर को साइबर ठगों ने भेलूपुर के अस्सी की रहने वाली संभावना त्रिपाठी को आनलाइन पार्ट टाइम काम करके अच्छी कमाई लालच दिया। शुरू में उन्हें कंपनियों को रेटिंग देने, कार बुकिंग का टास्क दिया गया।
इन्हें पूरा करने पर रुपये भी उनके बैंक खातों में भेजकर भरोसा बनाया। इसके बाद शेयर आदि में निवेश करके अच्छी कमाई का लालच देकर 39 लाख 15 हजार रुपये की साइबर ठगी की। इस मामले में मुकदमा दर्ज करके पुलिस ने जांच शुरू किया। उन बैंक खातों को खंगालना शुरू किया जिनमें संभावना से ठगी के बाद रुपये ट्रांसफर किए गए थे।
इस दौरान मध्य प्रदेश के गुना के राघोगढ निवासी जितेन्द्र अहीरवार व गुना के ही भार्गव कालोनी निवासी कमलेश किरार का नाम सामने आया। दोनों ने ही ठगी में मुख्य भूमिका निभाई थी। वाराणसी पुलिस इन तक पहुंची तो इनके अन्य साथी गुना के आनंदपुर का रामलखन, राघोगढ संजय मीना, मोहम्मदपुर का अमोल सिंह, महूखान का सोनू शर्मा और अशोक नगर के जोलन का निक्की जाट भी हाथ लग गए।
इनके पास से पुलिस ने विभिन्न बैंकों के 48 एटीएम कार्ड, 33 फर्जी सिम कार्ड, 14 मोबाइल, चार फर्जी आधार कार्ड, तीन फर्जी पैनकार्ड, सात चेक बुक के साथ ही फिंगर प्रिंट स्कैनर, फर्जी मुहर व एक होंडा अमेज कार बरामद किया।
आठ महीने से पीछे लगी रही पुलिस
संभावना त्रिपाठी से ठगी करने वाले साइबर ठगों की तलाश में लगी पुलिस आठ महीनों से लगातार उनकी पीछे लगी रही। ठगी के लिए इस्तेमाल होने वाले वेबसाइट, टेलीग्राम खातों, मोबाइल नंबरों तथा बैंक खातों की जांच करती रही। इलेक्ट्रानिक सर्विलांस व डिजिटल फुटप्रिंट के आधार पर मध्य प्रदेश के इंदौर में छुपे ठगों तक पहुंच गई और उनको गिरफ्तार कर लिया।
ऐसे करते हैं ठगी
- कम निवेश में अच्छी कमाई का लालच देकर खुद के बनाए गये वेबसाइट तथा टेलीग्राम ग्रुप में जोड़ते हैं
- निवेश से संबंधित योजना बताते हुए कंपनी के बैंक खातों में रुपये ट्रांसफर करने को कहते हैं।
- यह रुपये कंपनी के फर्जी बेबसाइट पर यूजर के खाते में लाभ के रूप में दोगुना-तिगुना दिखता है।
- विश्वास में आकर लोग और अधिक रुपये निवेश करते हैं और जब रुपये निकालना चाहते है तो निकलता नहीं है क्योंकि रुपये फ्लैश एमाउंट होता है जो वास्तव में होता ही नहीं है।
विदेशों तक फैली हैं जड़ें
पकड़े गए साइबर ठगों से पुलिस को जानकारी मिली कि लोगों को मैसेज भेजने, डिजिटल काल करने के लिए एप का इस्तेमाल करते हैं। इनका एड्रेस चीन, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया व दुबई में जेनरेट होता है। इससे साइबर ठगों की पहचान छुपी रहती और पुलिस इन तक नहीं पहुंच पाती है।
साइबर ठगी के हासिल रुपये को भी कई बार विदेशों में भेजकर फर्जी गेंमिग एप के यूजरो के बैंक खातों व अपने अन्य सिंडीकेट के खातों मे भेज दिया जाता है। संभावना से ठगी के मामले में पुलिस अब तक ढाई लाख रुपये वापस कार चुकी है। जिन बैंक खातों में रुपये ट्रांसफर किए गए उनकी जानकारी हासिल करने अन्य रुपये वापस कराने का प्रयास कर रही है।
साइबर ठगी से हासिल किए काफी रुपये
पुलिस को जानकारी मिली है कि जितेंद्र व कमलेश तीन सालों से साइबर ठगी में लिप्त हैं। इन्होंने मध्य प्रदेश के इंदौर समेत देश के अन्य जगहों पर मकान व कार आदि खरीदा है। दोनों शानो-शौकत की जिंदगी जीते हैं। यह दिखाकर ही युवकों को साइबर ठगों के गिरोह में शामिल करते हैं।