#UP: खड़गे बोले- डबल इंजन सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था को डबल बीमार किया, मोदी जी ने जवाबदेही तय की है क्या?#

कानपुर में संक्रमित खून चढ़ने के कारण थैलेसीमिया के 14 पीड़ित गंभीर बीमारियों की चपेट में आ गए हैं। ये हेपेटाइटिस बी, सी के साथ-साथ एचआईवी पॉजिटिव भी पाए गए हैं। हैलट के बालरोग अस्पताल के थैलेसीमिया सेंटर में जब रोगियों की जांच की गई तो संक्रमण पता चला है। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को तीन से चार सप्ताह में एक बार खून जरूर चढ़ता है। इन्हें साल में 18 से 20 बार खून की जरूरत पड़ती है
आशंका है कि विंडो पीरियड में लिए गए खून को चढ़ाए जाने से इन पीड़ितों को संक्रमण हुआ है। अभी यह पता नहीं चल पा रहा है कि थैलेसीमिया पीड़ितों को संक्रमण कब मिला। बालरोग अस्पताल के थैलेसीमिया नोडल सेंटर में 180 थैलेसीमिया पीड़ित इलाज कराते हैं। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बालरोग विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार आर्या ने बताया कि सात पीड़ितों को हेपेटाइटिस बी, पांच को हेपेटाइटिस सी और दो में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई है।
कोरोना काल के बाद रोगियों की संख्या बढ़ गई है
पीड़ितों को सेंटर पर खून चढ़वाया जाता है। इसके अलावा पीड़ित निजी नर्सिंगहोमों और दूसरे सेंटरों पर भी खून चढ़वा लेते हैं। डॉ. आर्या का कहना है कि हेपेटाइटिस बी, सी तथा एचआईवी संक्रमित का खून विंडो पीरियड में लेने पर जांच में संक्रमण का पता नहीं चल पाता है। ऐसा संक्रमित खून चढ़ जाने पर वह भी इस रोग की गिरफ्त में आ जाता है। डॉ. आर्या ने बताया कि कोरोना काल के बाद अस्पताल के थैलेसीमिया सेंटर पर रोगियों की संख्या बढ़ गई है।
कानपुर के इन जिलों के थैलेसीमिया पीड़ित आते हैं
कोरोना काल के पहले 40-45 थैलेसीमिया पीड़ित ही सेंटर में इलाज कराते थे। लेकिन, लॉक डाउन के बाद संख्या बढ़ गई क्योंकि लोग लखनऊ और बाहर के सेंटरों पर नहीं जा पाए। इस समय थैलेसीमिया पीड़ितों की संख्या 180 है। इनमें शहर के अलावा कानपुर देहात, औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, उन्नाव आदि जिलों के थैलेसीमिया पीड़ित आते हैं। उन्होंने बताया कि पीड़ितों में संक्रमण के लक्षण मिलने पर जांच कराई गई थी। इससे संक्रमण की पुष्टि हुई।
बचाव के लिए सुझाव (डॉ. अरुण कुमार आर्या, बालरोग विभागाध्यक्ष, जीएसवीएम)
हेपेटाइटिस बी से सुरक्षा के लिए पीड़ितों को टीका लगाया जाए।
हेपेटाइटिस सी का इलाज उपलब्ध है। अच्छे डॉक्टर से कराएं।
खून में एचआईवी की जांच सख्त की जाए, उसके बाद चढ़ाया जाए।
एचआईवी विंडो पीरियड की स्थिति (डॉ. लुबना खान, नोडल अधिकारी ब्लड ट्रांसफ्युजन विभाग, जीएसवीएम)
नैट टेस्ट से व्यक्ति के संक्रमित होने के 10 से 33 दिन बाद संक्रमण पकड़ में आता है।
एंटी बॉडी टेस्ट से 23 से 90 दिन में संक्रमण पता चलता है।
रैपिड एंटीजन टेस्ट से 18 से 90 दिन में संक्रमण का पता चलता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही ये बात
डबल इंजन सरकार ने हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को डबल बीमार कर दिया है। यूी के कानपुर में एक सरकारी अस्पताल में थैलीसीमिया के 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ा दिया गया, जिससे इन बच्चों को एचआईवी, एड़स और हैपेटाइटिस बी, सी जैसी चिंताजनक बीमारियां हो गई हैं। ये गंभीर लापरवाही शर्मनाक है। मासूम बच्चों को भाजपा सरकार के इस अक्षम्य अपराध की सजा भुगतनी पड़ रही है। मोदी जी कल हमें 10 संकल्प लेने की बड़ी-बड़ी बातें सीखा रहे थे, क्या उन्होंने कभी अपनी भाजपा सरकारों की रत्तीभर भी जवाबदेही तय की है?