#आजमगढ़ की संतोष कर रहीं कमाल: कबाड़ वाली कारीगरी बढ़ा रही आलीशान घरों की शोभा, हर कोई कर रहा तारीफ#

”जो आपके लिए वेस्ट है, वो हमारे लिए बेस्ट है” यह कोई कहावत नहीं बल्कि हकीकत है। जी हां, आप सही समझ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं ”साज” फाउंडेशन की संचालिका डाॅ. संतोष सिंह की। जिनके कलाकृतियों की कोई सानी नहीं है। गरीब हो या अमीर उनके घरों से निकलने वाले कबाड़ या आसपास पड़े निष्प्रयोज्य सामानों को आकर्षक रूप दे रही हैं। इनके द्वारा निर्मित सामान अब बड़े घरों के डायनिंग हाल की शोभा बढ़ा रहे हैं।
शहर के सिधारी मोहल्ले में रह रहीं डा. संतोष सिंह ने इलाहाबाद से पालीटेक्निक से फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया। इसके बाद इलाहाबाद से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की। उनकी शादी जिले के सिंहपुर जहानागंज निवासी डाॅ. एपी सिंह से हुई। एक घरेलू महिला की जिंदगी जी रहीं डा. संतोष सिंह अपनी प्रतिभा का सदुपयोग आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में करने की सोचीं, वह भी जिसमें किसी प्रकार के रॉ-मैटेरियल की जरूरत न हो। उन्होंने नारी सशक्तीकरण की दिशा में महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एक पहल की। ग्रामीण महिलाओं के हुनर को तराशने और उन्हें स्वावलंबी बनाकर आर्थिक समस्या से उबारने के लिए कार्य शुरू कर दिया। महिलाओं ने जूट, रद्दी पेपर, थर्माकोल, कपड़ा सहित कबाड़ आदि से कलाकृतियां बनाना शुरू किया। संस्था से जुड़ीं लगभग 350 महिलाएं प्रतिमाह लगभग 10 से 15 हजार रुपये की आय कर रहीं हैं। उनके द्वारा बनाए गए सामान की बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया है। काफी संख्या में लोग कार्यशाला से ही कबाड़ से बने सामान ले जाते हैं। जब कारोबार बढ़ा तो उन्होंने वाट्सएप और फेसबुक पर भी अपनी दुकान सजा ली और वहां भी अपने सामानों की बिक्री करती हैं।